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Prakash Singh AwDhbrHxjD

Classics

5  

Prakash Singh AwDhbrHxjD

Classics

कहानी कर्ण की [महाभारत ]

कहानी कर्ण की [महाभारत ]

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पांडवो को तुम रखो, मैं कौरवो की भीड़ से

तिलक शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीढ़ मैं,

सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं

आर्यव्रत को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं ,

कुंती पुत्र हूँ मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं

इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ,

आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये

भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे!

बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे

काबिल दिखाया बस लोगो को ऊँची गोत्र के,

सोने को पिघला कर डाला सोन तेरे कंठ में

नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने,

यही था गुनाह तेरा,तु सारथी का अंश था

तो क्यो छिपे मेरे पीछे ,मैं भी उसी का वंश था,

ऊँच नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था

वीरो की उसकी सूची में,अर्जुन के सिवा कौन था,

माना था माधव को वीर,तो क्यो डरा एकलव्य से

माँग के अंगूठा क्यों जताया पार्थ भव्य है,

रथ पे सजाया जिसने क्रष्ण हनुमान को

योद्धाओ के युद्ध में लडाया भगवान को,

नन्दलाल तेरी ढाल पीछे अंजनेय थे

नीयती कठोर थी जो दोनो वंदनीय थे,

ऊँचे ऊँचे लोगो में मैं ठहरा छोटी जात का

खुद से ही अंजान मैं ना घर का ना घाट का,

सोने सा था तन मेरा,अभेद्य मेरा अंग था

कर्ण का कुंडल चमका लाल नीले रंग का,

इतिहास साक्ष्य है योद्धा मैं निपूण था

बस एक मजबूरी थी,मैं वचनो का शौकीन था,

अगर ना दिया होता वचन,वो मैं ने कुंती माता को

पांडवो के खून से,मैं धोता अपने हाथ को,

साम दाम दंड भेद सूत्र मेरे नाम का

गंगा माँ का लाडला मैं खामखां बदनाम था,

कौरवो से हो के भी कोई कर्ण को ना भूलेगा

जाना जिसने मेरा दुख वो कर्ण कर्ण बोलेगा,

भास्कर पिता मेरे ,हर किरण मेरा स्वर्ण है

वर्ण में अशोक मैं ,तु तो खाली पर्ण है,

कुरुक्षेत्र की उस मिट्टी में,मेरा भी लहू जीर्ण है

देख छानके उस मिट्टी को कण कण में कर्ण है!


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