साक्षात्कार
साक्षात्कार
उस गहरी काली रात में भी
ख्वाब ढूँढना मुस्किल है
जब नींद ही उड़ गयी हो,
स्निग्ध निर्मल पूर्णिमा के विधु में भी ताप है
जब विरह वेदना बढ़ गयी हो,
सोचने की शक्ति छीन जाये
और कल्पना शक्ति भी
गर वो दूर हो जाये हृदय से,
अब सुनो गर पास हो, हाथों में हाथ हो
उँगलियों की हलचल से हीं एक निर्माण हो जाए
विचारों का मंथन एक दर्शन प्रस्तुत कर जाये
दृष्टि में कालजयी दृष्टिकोण आ जाये
लेकिन प्रश्न है वो कौन है ?
जिसका होना ना होना यूँ प्रभावी है
तो सुनो
वो ज्ञान है इष्ट का,
वो आनंद है सत्य का
वो साक्षात्कार है खुद का।