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Avinash Pankaj

Abstract

2.9  

Avinash Pankaj

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हमारे प्रश्न हमारी विडम्बना

हमारे प्रश्न हमारी विडम्बना

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कुछेक प्रश्न के उत्तर की खोज जब प्रश्न खड़े करते हैं

कुछेक भावों के उद्वेग जब प्रश्न खड़े करते हैं

किसी का होना प्रश्न खड़े करता है

तो कभी किसी का अभाव भी प्रश्न खड़े करता है

कभी उनका कभी मेरा

स्वभाव, प्रश्न खड़े करता है

कभी उनका कभी मेरा

बर्ताव प्रश्न खड़े करता है

तो कभी बातों में ठहेराव

प्रश्न खड़े करता है

कभी खामोशी तो कभी बड़बोलापन,

अक्सर हरबार हीं तो प्रश्न खड़े करता है

मौन हूँ सुन रहा हूँ

ठिठक कर रह जाता हूँ

उत्तर शायद मिलता है कभी

पर अभिव्यक्त न कर पाता हूँ

तुम्हारी व्यस्तता का जवाब नहीं

और मेरी फुरसत भी तो निराली हीं है

अक्सर मुझे आरजू है वैसी

जिसको मुझसे कोई सरोकार नहीं

सिफारिशें करनी है वहीं

जहां मेरा कोई पैरोकार नहीं

बेबस पड़ा हूँ जैसे मेरा कोई किरदार नहीं

आँखों में नींद है तो तोड़ता हूँ

रोज कुछ सपने नए जोड़ता हूँ

विचारों के प्रहार से मैं

अपनी खुदी को तोड़ता हूँ

फिर उम्मीद की ईंट से मैं

शयनगार अपने जोड़ता हूँ

अथक हूँ अपनी मेहनत से

अक्सर मैं खुदी को थकाता हूँ

बोल और शब्द और संगीत मेरे

खुदी की बात खुदी को ही सुनाता हूँ मैं

खुदी की बात खुदी को ही सुनाता हूँ मैं



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