प्रेम के पंथ
प्रेम के पंथ
प्रेम के दो पंथ थे
एक सामने एक घूमके
जो मिल गया वो साथ था
जो खो गया, वो पास था
मैं चुप रहा तुम चुप रहे
दिल आहटे दिल की सुने
चाहा है कुछ जो ना मैं कहूँ
चाह है कुछ जो न सुन सकूँ
होती अधूरी दास्तान,
होते अधूरे फासले
रोती हुई सी रात भी
हँसते हुए कुछ स्वप्न से
जाना ना चाह मैं कभी
रुकना ना चाहे तुम कभी
प्रेम के दो पंथ थे
एक सामने एक घूमके

