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प्रीति शर्मा "पूर्णिमा

Classics Inspirational

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प्रीति शर्मा "पूर्णिमा

Classics Inspirational

नारी हूं

नारी हूं

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नारी हूं, नारी हूं, मैं नारी हूं 

नर को जनने वाली मैं ही नारी हूं ।

जग में इक पहचान मिले,

मान मिले सम्मान मिले,

मैं भी हूं अभिमान जगे।


मस्तक स्वाभिमान सजे।

मैं इसकी अधिकारी हूं ।।

नर को जनने वाली मैं ही नारी हूं...

नारी हूं ....

ना ही हूं भूखी दौलत की,

ना भूखी शौहरत की,

बस थोड़ा अपनापन हो

और हो थोड़ा भरोसा।


बस चाहूं इतनी हकदारी हूं

नर को जनने वाली मैं ही नारी हूं

नारी हूं.....

सुख-दुख सबका अपना मानूं,

हर कर्तव्य निबाहूं,


गृहस्थ संजोए,जान लगा दूं,

कुछ न फिर भी चाहूं।

हर रात सुबह की करती,मैं तैयारी हूं।।


नर को जनने वाली मैं ही नारी हूं..

नारी हूं.....

संघर्षों से मैं ना घबराऊं,

मुश्किल में मैं डट जाऊं,

घर-संसार बचाने को मैं

तूफानों से भी भिड़ जाऊं।


आ जाये कोई प्रलयंकारी चाहे क्यूं

नर को जनने वाली मैं ही नारी हूं

नारी हूं, नारी हूं, मैं नारी हूं।

नर को जननेवाली मैं ही नारी हूं।।


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