AKIB JAVED

Abstract Classics Inspirational

4.7  

AKIB JAVED

Abstract Classics Inspirational

गाँधी तेरी लाठी

गाँधी तेरी लाठी

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गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार

हो रहा है कितना देखो अत्याचार

जात-धर्म से हो गए,सब यहाँ लाचार

ईमान का भी हो रहा खूब व्यापार

गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार


लूट-पाट,दंगो की दुकानें चल रही

बहू-बेटियों की अस्मिता लुट रही

मंदिर-मस्ज़िद भी फल-फूल रही

इन सबसे भरा हुआ है अख़बार

गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार


साम-दाम दंड भेद,गाँधी नाम रहे

नैतिकता को अपने सब त्याग रहे

गाँधी के वचन तो सबको याद रहे

मनाते इसे जैसे हो कोई त्यौहार

गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार


करूणा अहिँसा तेरा रूप रहा

अंग्रेज़ो के सामने तू न डिगा

तेरे उसी रूप क़ी है दरकार

गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार।


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