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Ambika Dubey

Abstract Romance Classics

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Ambika Dubey

Abstract Romance Classics

इज़हार - ए - इश्क़

इज़हार - ए - इश्क़

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प्यार करती हूं बहुत ही ज्यादा तुम्हे,

लेकिन इजहारे मोहब्बत ना कर पाई,

कई बार टूटी, कई बार बिखरी,

लेकिन अपने आपको तुम तक ना समेट पाई,

कई बार दिल ने कहा, चल कर ले इज़हार,


फिर डर सा लगा रहा, कहीं कर ना दे इनकार,

क्यूंकि तुम्हे प्यार मोहब्बत का फ़साना,

लगता है कहानी किताबों का कोई तराना,

तुम कभी प्यार को महसूस ही नहीं कर पाए,


चमकते पूर्णिमा के चांद में भी तुम पर

हमेशा रहे सावन के काले मेघ छाए,

ना जाने क्यों बंद करके रखा है तुमने,

अपने दिल को प्यार से दूर,


कठोर चारदीवारी में,

एक बार देखा भी नहीं मुझे,

प्यार की खिड़की की जाली से,

तुमको यूँ सख्त देख मैं कभी

हिम्मत ही ना जुटा पाई,


प्यार करती हूं तुमको सालो से,

लेकिन ये कहने की ताकत

मुझमें आज तक ना आई,

कैसे कर दूँ, इज़हार ए इश्क़,


जबकि पता है मुझे,

इस एकतरफा इश्क़ में

मिलेगी बस रुसवाई।


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