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monika sharma

Classics

3  

monika sharma

Classics

हयात का सफ़र

हयात का सफ़र

2 mins
343


हयात की शुरुआत तो आसान थी

क्योंकि बचपन बड़ा मासूम था

जहाँ कागज की कश्ती जहाज थी

और अत्फ़ से बना आदिल आशियाना था।


कलेवा कर चल पडते थे

उस विद्यालय की ओर

अकेले नहीं, अपनी टोली संग

मचा दिया करते थे अक्सर हुडदंग चहु ओर।


बचपन मस्ती में गुजर गया

बड़ों के अश्फ़ाके पर

प्रश्न जरुर आया होगा -

'क्या यही था सफर?'


जिंदगी का पैगाम आया

'अब हो जाओ जिन्ह़ार!

नसीब में सबके नहीं हूँ मैं,

ज़रा कर लेना तसव्वुर।'


त्यागने पडते है आरजू और छंद

बनने के लिए अरजमंद

आया जो जिंदगी का प्रस्ताव,

कर गया शामिल अपनी खिदमत में।


सफर की शुरुआत तो तब हुई

जब मुलाकात हुई मुसाफ़िरों से,

जिनकी मंजिल तो एक थी

पर राहों में अंतर था।


जिंदगी तो थी पर

आसरा नहीं था,

एहतियाज तो थी

पर ऐहतमाम नहीं था।


कान भी स्वयं की असकाम़ सुनते रहे

इताब तो खूब आता

पर फिर भी

एहसान समझ कर झेलते रहें।


लोग शराब के खुमार में धुंध थे

और यहाँ,

अब्सार आब-ए-चश्म

छलका रहे थे।


खुद की मेहनत पर

कभी गुमान नहीं किया

क्योंकि खुद का अश्फ़ाक

मैं स्वयं ही था।


एक दिन कहा जिंदगी ने मुझसे

'क्यों तू मुझसे शिकायत नहीं करता?

क्यों तू छोटी उपलब्धियों में खुर्रम होता?

क्यों तू नामुमकिन को है चाहता,

जब तेरा कोई नाम ही नहीं होता?'


मैंने कहा-

'क्या फरिय़ाद करू मैं उससे

जो हर किसी के नसीब में नहीं

क्यों न होऊ प्रसन्न में उनमें

जो होता नहीं मुकम्मल हर किसी को।’


अर्थ वही है

समझ नहीं है

'नामुमकिन’ नहीं 'नाम’ 'मुमकिन' होता है,

निर्भर करता है कौन कैसे समझता है।


क्या फरीय़ाद करू मैं तुझसे

जिसके पास भीड़ कम नहीं

शिकायत करने वालों की

जो तुझसे यह कहते है-


"थक गए है तेरी खिदमत से

जो आतिश के अंगारों पर चलाती है,

आराम नहीं है, काम बहुत है

नींद मुकम्मल नहीं हो पाती।"


एे जिंदगी तू उनको

तख्त पर नहीं कब्र में

मुकम्मल नींद सुला देती।


तुने दिया वो कम नहीं

तो फरीय़ाद कैसे करू

सफर मुकम्मल हो जाए

यही आरजू है मेरी।


शब्द के अर्थ:

अत्फ़- प्रेम; आदिल- सच्चा; आशियाना- घर ; कलेवा- नाश्ता; अश्फ़ाक- सहारा; जिन्ह़ार - सावधान; पैगाम- संदेश; तसव्वुर- विचार;

अर्जमंद - महान ; खिदमत- नौकरी; एहतियाज- आवश्यकता; ऐहतमाम- व्यवस्था; असकाम़- बुराईयां; इताब- गुस्सा; अब्सार- आँखे;

आब-ए-चश्म- आंसू; गुमान- शक; खुर्रम- प्रसन्न;

फरीय़द - शिकायत।


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