कुछ बातें
कुछ बातें
एक दस्तक आज अतीत ने दी,
जो लाईं यादों को बनाकर मेहमान
याद आई कुछ बीतीं बातें,
और कुछ अनकहे अरमान।
वक़्त के संग बेशक
बीत गई थी बातें,
पर उल्फ़त अपना रंग छोड़ गई
जब यादों ने प्रश्न किया ' क्यों ' ?
तो कहना यह था कि
कुछ बाते बता नहीं पाए,
और कुछ अधूरी रह गई।
जो चेहरा हँसाया करता था लोगों को
न जाने उसपर छाईं कैसी उदासी है?
वजह तो कुछ है भी नहीं
न जाने फिर यह दिल खुद से व्यक्त कर रहा कैसी नाराजगी है?
आखिर बदल ही गई खुशियाँ गम में
शायद ,वक़्त ने खेल ली अपनी बाज़ी है ।
जो निगाहें झुकीं नहीं कभी
न जाने क्यों आज वह मौन हैं?
याद दिला रहीं बातें जिसकी
आखिर वह शख्स कौन है?
क्यों दिमाग की बातें सुन
दिल ने अपनी तकलीफ रोक ली ,
कुछ बातें बता नहीं पाएं
और कुछ अधूरी रह गईं।
हर दिन नया बहाना बना
उसे तड़पाते रहे,
उसकी बेचैनी का दृश्य देख
हम मन ही मन मुसकराते रहे ,
कभी सोचते कि आज बता देंगे
और इस बार इस बात से मुड़ेंगे नहीं
पर न जाने क्यों भूल जाते थे
कि बेबस परिंदे थे हम जो कभी अपनी क़ैद से उड़ेंगे नहीं ,
रिश्ता टूट जाने के खौफ से
जज़्बातों को पिंजरे में कैद करते रहे,
जिंदगी के हर उगते सूरज के साथ
हम एक नई मौत मरते रहे।
आखिर क्यों अपनी खुशियाँ मिटा
हमने एक तड़प भरी जिंदगी चुन ली
कुछ बातें बता नहीं पाए
और कुछ अधूरी रह गईं।
