परियों की कहानी
परियों की कहानी
बचपन में खूब सुनी थी,
सुन्दर परियों की कहानी।
न्याय प्रिय था राजा,
ममता से भरी थी रानी।
पंख फैला कर उड़ती थीं,
कहीं यहाँ तो कभी वहाँ।
स्वच्छंद स्वतंत्र सा जीवन,
किसी बात की कमी कहाँ।
कभी कभी ऐसा भी होता,
कोई दानव आता परी लोक में।
उसके अत्याचारों को सहते,
परियाँ पड़ जाती शोक में।
पर जब भी ऐसा बुरा हुआ,
आता कोई राजकुमार।
न्याय दिलाता परियों को,
दानव का कर के संहार।
बड़े हुए तो हमने देखा
दुनिया बिलकुल उलटी है।
बस बुरे का बोल बाला,
अच्छाई बिलकुल सिमटी है।
इस दुनिया में प्यारी परियाँ,
घर में घुट कर रहती हैं।
हैवानों से डर कर देखो,
कितने बंधन सहती हैं।
जिसने भी यहाँ पंख फैलाये,
कोई दानव नोच गिराता है
क़तरा क़तरा जिस्म का,
काट काट कर खाता है।
मानवता के मूल्य यहाँ पर,
क्या हमने खुद सिखलाये?
सही गलत का अंतर जो है,
निज आचरण में दिखलाये?
क्या हमने खुद भी है लाँघी,
मर्यादा की लक्ष्मण रेखा?
क्या अभद्र चुटकुले सुनाये,
और बुरी नज़र से देखा?
सरल बड़ा है निंदा करना,
कानूनों की सरकार की।
कठिन है उत्तम शिक्षा देना,
जो नींव बने संसार की।
बच्चों मुझसे नहीं मिलेगी,
सुन्दर परियों की कहानी।
कथा शिवाजी लक्ष्मीबाई,
सुन लो मेरी ज़बानी।
सीखना इनके जीवन से,
नारी का सम्मान हो कैसा?
अबला परी मत बनना तुम,
होना वीर लक्ष्मी के जैसा।