STORYMIRROR

Prem Bajaj

Action

3  

Prem Bajaj

Action

बुरा ख़्वाब

बुरा ख़्वाब

1 min
282

जा रही थी स्कूल से घर को

इक दिन मैं अकेली ,

सँग ना थी कोई मेरी सहेली,

इक वहशी जानवार था खड़ा रस्ते पे ,

आ धर दबोचा मुझे यूँ जैसे

बाज दबोचे किसी चिड़िया को,

रोइ ,गिड़गिड़ाई, हथ जोड़े,

लाख मिन्नतें मनाई,

ना माना वहशी दरिन्दा,

ना छोड़ी मेरी कलाई

तोड़ के रख दिया यूँ मुझको,

जैसे तोड़े मासूम कली कोई।

बिखर गई मैं, टूट गई मैं,

सोचा अपना आपा खत्म कर दूँ,

लेकिन फिर मन से इक आवाज़ ये आई, आज अगर तु भी मर गई तो

कल कोई और कली

कभी खिल नही पाएगी।

लड़ना होगा तुझे उनके लिए,

भूलना होगा अपने दर्द को ,

समझ के इक बुरा सपना ।

झट से उठ के कसी कमर जो ,

चँडी बन के निकली फिर मैं,

आवाज़ उठाई, शोर मचाया,

पकड़ के उस दरिन्दे की गर्दन,

वहीं पे उसको मार गिराया ।

समझ के इक बुरा ख्वाब

मैने अपना कदम आगे बढ़ाया ,

और जीवन सफर अपना सुहाना बनाया ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Action