मृत्युंजय
मृत्युंजय
है दृढ़ प्रतिज्ञ मन में धैर्य धरती सा बना
है तुंग श्रृंग सा संकल्प कदम बुलंद बढ़ा
है गगन तुझे पुकारती राह दिखाती रश्मियाँ
है हर कदम का खेल, तू द्रुत शीघ्र बढ़ाए जा।
है पथ असीम विघ्न गरजती चुनौतियां
है कांप रहा नभ कौंध रही बिजलियाँ
है तम घना भय का प्रबुद्ध ज्योति गीत गाये जा
है हर कदम का खेल, तू द्रुत शीघ्र बढ़ाए जा।
है क्लांत पड़ी असंख्य निशीथ इस मृत्यु पथ पर
है रैन भया खो रही उषा कही निहार तुषार में
है वीर शूर पृथ्वीपुत्र मुहिम मृत्यु विरूद्घ चला
है हर कदम का खेल, तू द्रुत शीघ्र खेले जा।