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MD ASHIQUE

Romance

3  

MD ASHIQUE

Romance

प्रेसी की शाम और तुम'

प्रेसी की शाम और तुम'

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आज कल्पना के दहलीज से आयी हो तुम मेरे ख्वाब में

कुछ गुमसुम सी क्लांत ,

और अभी अभी मैं लिख रहा था लम्हों का वह अहसास

उन्ही टूटे हुए पत्रोंं पर।

वह 'प्रेसी' - कांलेज का रंगीन शाम एकांत वृक्ष साये में

स्टैचू चबूतरे पर बिताये क्षण भर विश्राम।


वह गुलमोहर पर गिरते लैम्प की मंध रौशनी में

तुम्हारी गुलाबी मधुर मुस्कान,

वह मलय मंद वायु आवेग में मँडराता भ्रमर का मन,

बिछी हुई हरी घास पर चमेली सुमन का स्पर्श चुम्बन

वृक्ष डाली पर बुलबुल का मदमस्त मीठी गान।


वह नभ की गोद में सोयी लजाती ललाती सांझ

बादलों के झील में सूरज का धीरे धीरे गहरा होना

तुम्हारी अंचल पर प्रथम रात्रि का उतरना।


फिर तम में विलीन होती कदमों की आहट

टूटे हुए पत्तों सा दुखते मौन मेरे अल्फाज़ को एकांत छोर

ख्वाब देहरी से कल्पना तिमिर में अज्ञात तुम्हारा चले जाना।।



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