जलते अख़बार
जलते अख़बार
समय के अख़बारों में
मैं हर रोज अपनी मौत का
ख़बर पढ़ता सोचता हूँ
खून और आंसू के समर में
कब तक अश्क बहता रहेगा।
बंजर भूमि पर कब तक
नफरत का लहू बहता रहेगा
आंखों में जमी धूल कब
अश्कों से धुल बहेगा।
अपने कब्र से हर रोज
जलता हुआ अपना शहर देख
मैं चिखता हूँ
इंसानियत की मौत पर।
आसमाँ तू कब
तरस कर मेरे शहर पर
रहम बरसाएगा।
