'हमारा विद्यालय'
'हमारा विद्यालय'
वर्षों बाद विद्यालय के
दरबार ए दहलीज पर
गुनगुनी शुष्क स्मृतियों को
जगाते बिछुड़े बंधु यारों के संग
खिलखिलाती हंसी मज़ाक ठहाके।
कुछ समय की बेवफ़ाई के अफसाने
अतीत की थोड़ी नाराज़गी भरे दिल
ग़म के सागर को भीतर दबाए मन के
झरोखे से बाहर झांकती बंधुओं के
कुछ मंद मुस्काने।
कुछ पुराने गुरु जन के वही पुरानी
मीठी आत्मीय व्यवहार, उसी लहज़े में
उनका आज भी हमारे अंदर
आत्मविश्वास को जगाना,
और कुछ के वही दूरी बनाए
उदासीन सा आशीर्वाद।
हमारी कक्षाओं के सफेद दीवार पर
महकती यादों के कुछ सुरक्षित धूल,
धूल पर लिखी एक अनादृत बालक की
अस्पष्ट कविता में स्पष्ट स्वप्न के धार।।