हर बार दो सवाल'
हर बार दो सवाल'
कैसे हो ?
यह सवाल आज कल
उसे बहोत विचलित करते है
एक सुप्त बेचैन अतृप्त
मन मीन तरप कर
तन रूधिर में उन्माद भरते है,
लफ्जों के बाटी में सागर भरके वह
'ठीक हूँ' एक घूँट भर में पी जाता है।
और जब कोई कौतूवश पूछे उससे -
'क्या कर रहे हो आज कल'?
मन के तहख़ाने में बैठा
कोई मज़लूम अपराधी
उठ भागने को व्याकुल होता है
लेकिन सामने पथ शेष देख
अपने ही हाथों से गढ़े कैदखाने में
लौट आता है,
वह अपनी पूरी नाकाम कोशिश को
'बस यूँ ही' उत्तर देकर हर बार पूरी
करने की कोशिश करता है।