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ARVIND KUMAR SINGH

Action

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ARVIND KUMAR SINGH

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दुनियां में आने तो दो

दुनियां में आने तो दो

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मातृ प्रेम से ओत-प्रोत मैं चली गगन की ओर,

स्‍वछंद विचरण चाहूँ दहलीज से क्षितिज की ओर।


अभिलाषा के पंख लगा कर करूँ स्‍वप्‍न साकार,

मानव जननी बन कर मैंने दिया सृष्टि आकार।


हरी-भरी व धानी चुनरी, हरी भरी है मेरी धरा,

घृणा, पाप न द्वेष कहीं, चाहूँ हर दिल प्रेम भरा।


मानव तुझको आनन्‍द मिला मेरे ही आंचल की छाँव में,

तनिक संवर जो खड़ा हुआ तो डाल दी बेड़ी मेरे पांव में।


निर्मूत न कभी कोई आया है, मैं ही अवतरित करती हूँ,

अताताईयों का नाम मिटा दे, ऐसे पूत भी मैं ही जनती हूँ।


पाकर आशीर्वाद मेरा ही, रचाए मौत के साथ फेरे,

तिरंगे की लाज बचाई, भले ही हो गऐ शहीद सपूत मेरे।


अनजान नहीं जो तुम न जानो, कि मैं ही जन्‍म दात्री हूँ,

पर जनम सफर को तरसाया जिसको ऐसी मैं अब यात्री हूँ।


अरमानों की मैं गगरी हूँ, मुझ को पींग बढ़ाने दो,

रौनक होगा नित्‍य सवेरा, कम से कम दुनिया में आने दो।

 


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