STORYMIRROR

Deep Shikha

Crime Drama

0.8  

Deep Shikha

Crime Drama

नारी व्यथा

नारी व्यथा

1 min
26.8K


आए हो तो बोलो,

क्या तुम मेरी व्यथा सुनोगे ?

ये सुनकर भी श्रवड़, ओष्ठ,

तुम यूँ मौन रहोगे ?


मेरी कथा सुनेगा कौन,

है मेरी चीत्कार व्यर्थ,

अम्बु में डूबे नैया जब,

पतवार का रहा क्या कोई अर्थ ?


मैं भी जन्मी थी एक सुंदर,

प्यारी पुष्प सुकुमारी,

जिसका पालना बना भोग,

पुष्कर में लगी चिंगारी।


बस्ती थी बाल बिपिन में,

बस आवेग में चूर,

चंचलता की मूरत थी,

कुसुमाकर में कही दूर।


क्षमा प्रार्थी हूँ प्रियवर,

बोल में है जो रोष,

कल्पित जिह्वा बिफर रही,

कहो किसका है दोष?


सूरज के लालित्य में जो,

बनते है यहाँ श्री राम,

पूछो जा के तम में,

करते हैं ये क्या काम?


कारवाल भुजाओं में शोभित,

पुरुषार्थ का वो तो बल है,

नारी को जो अनुचर समझे,

संताप है ये, ये छल है।


जिस हृदय में नहीं नारी सम्मान,

बस काम का मद प्रबल है,

पुरुष वो रंक, उत्तकर्ष से दीन,

वो कुटिल दनुज केवल है।


मेरी काया से जन्मे को सब,

पाप कहें फिर भी रहती हूँ मौन,

अधर में हो शक्ति तो कहो,

है किसका बीज खेतिहर था कौन।


मेरी कौन सुनेगा यहाँ,

ना मेरी जाती ना मेरा वर्ण,

दे सकते यदि मोक्ष,

तो मृत्यु दान दे बन जाओ कर्ण।


मेरे निज की त्रास छोड़,

हैं सभी यहाँ पर आप मग्न,

मेरे तन पर वस्त्र नहीं,

या है पूरा समाज अर्धनग्न !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Crime