बेटियां
बेटियां
कितनी कोमल कितनी सुंदर कितनी छबीली होती हैं बेटियां?
फिर भी न जाने क्यों करते हैं लोग मूर्खता में इनकी अनदेखियां?
दिख जाता है किसी मुस्कुराती बेटी का चेहरा जब सुबह सबेरे।
करुणा, ममता जगती है अन्तर मन में धुल जाते हैं पाप घनेरे।
वह चुलबुली चिड़िया सी चहकती फूल सी महकती गांव में मेरे।
उसकी मौजूदगी से ही तो आबाद है ये घर गांव और सबके डेरे।
लोग यूं ही है चिढ़ते और ऊंघते उसके घर में जन्म लेने के बाद।
वह बेचारी हर आंसू पी कर भी करती है दो दो घरों को आबाद।
फूलों को यूं तोड़ना मरोड़ना तो जमाने की पुरानी सी आदत है।
वे क्या जाने कि इन्हीं फूलों से होती यहां खुदा की इबादत ह
ै।
क्यों कुचल देते हैं लोग जन्म लेने से पहले ही इसको गर्भ में?
क्या सम्भव है ऐसे पिशाचों को बेटा हो जाने पर जगह स्वर्ग में?
बोझ नहीं उपहार है बेटी उस खुदा की कुदरत व रहनुमाई का।
क्यों हर बार पूछा जाता है हिसाब उससे ही उसकी बेगुनाही का?
किसी की मरती बहन है देखो, तो किसी की बहु - भाभी है।
किसी की मरती बेटी है देखो, क्या इसी का नाम आजादी है?
जहां महफूज नहीं है फिजाओं में खुले में सांसे भी लेना।
सुन नारी उस समाज को अपनी सुरक्षा का जिम्मा न देना।
माना कि कुछ नारियां चालाक है, पर सजा सब को तो न दो।
गुनाह जिसने किया है हिसाब तो लो, उसी को सजा भी दो।