मेरी जान
मेरी जान
ये एक ऐसी मां के मनोभाव जिसकी मासूम 3-4 वर्षीय बेटी रिश्तों की आड़ में दरिन्दगी का शिकार हो, जान से ही हाथ धो बैठी थी। फिर नवागत बच्चे के इंतजार में माँ, बेटी के साथ हुयी घटना याद कर सिहर उठती है
तुझे दुनिया में लाने से पहले मेरी जान मुझे बहुत सोचना है ।
डरती हूं जालिम दरिन्दों से, दिये वफा के अभी खोजना है ।
लोग मासूम संग ऐसी दरिंदगी को अंजाम दे कब सोचते हैं ?
मासूम कलियों को भी अपनी हवस के लिए फिर-फिर नोचते हैं ।
जान कह कर भी, तुम अंजान अबोध को मैं जान न पाई ।
नाक के नीचे अंजाम दे गया वो मैं वक्त
रहते पहचान न पाई।
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तुमने मुझसे दिल की बात कहना चाही मूढ़ मैं समझ न पाई ।
अपनी जान को क्योंकर जान देकर भी बचा मैं न पाई ।
तुम मेरी जिन्दगी, तुम मेरी जान हो तुम्ही सुकून का नाम हो।
तुम हो दूर मुझसे दिल की आरजू ,सांसों मे बसी धड़कन हो।
जब इत्मिनान हो मुझ पर तुझे नन्ही, तुम तलाश कर लेना ।
अपनी इस दुखी, तन्हा मां को हो सके तो माफ कर देना ।
तुझे दुनिया में लाने से पहले मेरी जान मुझे बहुत सोचना है ।