STORYMIRROR

sandeeep kajale

Abstract

4  

sandeeep kajale

Abstract

दिल सा नहीं कोई कमीना

दिल सा नहीं कोई कमीना

1 min
485

बड़ा बेवफा है, लगे ये हरजाई

ज़िन्दगी पर ख्वाबों की घटा लहराई


कई अंजान, बातों को अंदर रखे

अपने, अरमानों को सितम से ढके


कहना चाहता है,मगर चुप सा है

बादलों में छिपता, अनकही धुप सा है


रोक देता है ये बढ़ते कदम

बेशक ये है संगदिल सनम


पैरों में डालता है, शर्तों की जंजीरें

क़त्ल-ऐ-आम करें, इसकी मीठी खंजीरें


क्या बात है, क्या है मेरा कसूर

चुभता है, इसमें यादों के नासूर


कर देता है हमेशा मुश्किल जीना

बेख़ौफ़, दिल सा नहीं कोई कमीना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract