दिल ना लगे
दिल ना लगे
ग़मों के बदल का कारवाँ चला
सिर्फ तन्हाई और दर्द मिला
इन आँखों की रोके कैसे मस्तियाँ
डाँटते नहीं उसे, करे हमेशा गुस्ताखियाँ
समझाये कैसे, है नादान बड़ा
बीच राह में पत्थर की तरह खड़ा
मेरे कई सवाल उसके पास पड़े है
पतझड़ से पहले ही पत्ते झड़े है
यादों में भीगा करती है पलकें
अश्कों से इश्क की दास्ताँ झलके
कहना है, लेकिन लफ्ज़ लगे खामोश
अजीब सा कोहरा है, ये कैसा आगोश
मनाये कैसे, जो तक़दीर ही रूठे
सारे वादे, इरादे लगते है झूठे
अपने अंदर की आवाज़ हमेशा सुनते
नये सपनों को हम रहे बुनते
यादों के पल खुश इस तरह बिखरे
सच्चाई की कसौटी पे रिश्ते निखरे
कभी भी ये रातों को ना जगे
ऐसा हो, किसी से दिल ना लगे