बालपन की अठखेलियां
बालपन की अठखेलियां
बालपन की अठखेलियां
याद है मुझे वो बचपन,
जब मैं खेल खिलौनों से खेलती थी,
अपने घर में सबकी प्यारी थी,
अपनी मां की राज - दुलारी थी,
मिट्टी का खाना और
बारिश में खेलना-कूदना,
फिर मां की डाट सुनकर,
उनका प्यार करना,
आज भी याद है मुझे
वो बालपन की अठखेलियां
वो गुड्डे - गुड्डी की शादी का खेल
खाना पकाकर उसे खिलाने का खेल,
विदाई के समय रोने का खेल,
आज भी याद है मुझे, वो
बालपन की अठखेलियां
पापा की गोद में खेलना,
फिर दादाजी,नाना-नानी का
लाड प्यार करना,
सबका मुझे प्यार करना,
आज भी याद है मुझे वो
बालपन की अठखेलियां
नटखट सा प्यारा सा था वो बचपन
जिसमें न कोई गिला ना कोई शिकवा था,
थी तो सिर्फ शरारतें ही शरारतें,
आज भी याद है मुझे वो बालपन की अठखेलियां
दादाजी से चवन्नी लेकर,
स्कूल जाने की खुशी,
और फिर नए दोस्त मेरे,
उनके साथ खेलकूद करना,
फिर टीचर की डाट सुनना,
एक आदत बन गई थी मेरी,
आज भी याद है मुझे वो बालपन की अठखेलियां
भाई का लड़ना, दीदी का प्यार करना,
टॉफी के लिए एक दूसरे से लड़ना,
एक दूसरे की टॉफी को छुपाना,
लड़ाई करके फिर एक दूसरे से प्यार करना,
आज भी याद है मुझे वो बालपन की अठखेलियां
पापा का प्यार, मां का आंचल,
नाना - नानी का प्यार, दादा - दादी का दुलार,
बस चारो ओर यही था प्यार,
आज भी याद है मुझे वो बालपन की अठखेलियां
मासूम से,नादान से,थे हम
बचपन में ही प्यारे थे हम
ना कोई मंजिल थी, ना कोई परेशानी थी,
थी ,तो बस शरारतें ही शरारतें,
आज ना जाने कहां, वो बचपन की यादें
कहीं गुम सी हो गई इस ज़िन्दगी में,
आज साथ है तो बस बचपन की यादें
जिसमें सिमट कर रह गई ज़िन्दगी हमारी,
काश! लौट आते बचपन के वो दिन
जिसमें हम मिट्टी से खेला करते थे,
और सबके राज दुलारे थे,
काश! लौट आते बचपन के वो दिन
काश लौट आते बचपन के वो दिन।