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Sanjay Arjoo

Children Stories

4  

Sanjay Arjoo

Children Stories

टमाटर के भाव

टमाटर के भाव

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 टमाटर को जैसे ही

सच्चाई का एहसास हुआ

अपने साथ हुए

अत्याचार का आभास हुआ।


ये काले, हरे, पीले, 

लोकी, कद्दू से आडे टेढ़े।

न रूप रंग, न शक्लो सूरत 

न ही कीमत से, ये लगते मेरे।


सांस फूंकता,गाल फुलाता,

छोड़ "सब्जी की मंडली" को 

वो लगा जोड़ने," फल मंडली",से अपना नाता ।


अपने बढ़ते भाव देख,वो 

गोद सेव की जा बैठा

मैं भी फल हूं,तुम भी फल हो, कहकर 

सेव को वो अपना,रिश्तेदार बना बैठा।


मेरे साथ हुआ है धोखा,

मैं ठहरा खानदानी सेठ।

तू भी लाल में भी लाल,

 कह सेव का अपना चाचा। 

लगा फुलाने, अपना पेट।


नए मुलायम, रसीले, टमाटर को

 चाचा सेव ने, झट अपनाया।

कहां था बेटा इतने दिन से

अब तक काहे तू, पास न आया ?


बहला फुसला कर रखा, था अबतक 

इन सबने मुझको,अपने साथ,।

मिल गए हो बिछड़े चाचा,

अब न छोडूं तुम्हारा हाथ।


दिन भर रहा ताकता, वो ग्राहक को

धूँप में झुलसे जब,उसके गाल ।

 चाचा सेव था मस्त छांव में।

टमाटर का, बुरा था हाल।


छींटों संग नहाती सब्जियां 

दिनभर जहां थी सब मस्त।

टमाटर, अब लगा था सड़ने

झेलके गर्मी हुआ, वो पस्त।


बिकने चला था भाव सेव के,

फिंका टमाटर नाली में,।

उतरी, खुमारी, भाव की सारी।

दाम बदल गए गाली में।


याद नही रखता जो सुख में,अपनो को

 हाल यही बस होता है ।

पड़ा अकेला,एक तरफ वो

सोच पे अपनी,अंततोगत्वा रोता है।



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