हर पुरूष दोषी नहीं
हर पुरूष दोषी नहीं
एक औरत से ज्यादती के बदले
क्यों बदनाम हो सम्पूर्ण पुरुष जाती?
क्या हर पुरुष पिता के साथ
आज भी बेटियां घर नहीं जाती ?
क्या सड़क पर बेटियां,
नही झूमती खुश होकर?
क्या हर पुरूष नही करता मदद।
बेटियों की पिता, भाई, मित्र होकर ?
कोई वर्ग, जाति, चाहे हो कोई धर्म।
पिता होकर जब डरता खुद मैं,
कैसे करूंगा मैं अधर्म ?
दे दो सजा उन कुकर्मियों को,
मैं साथ खडा हूं, बेटियों संग।
तुम बस सुधारो अपना, राजधर्म,
अब तो सुधारो, अपना, न्यायधर्म,