मेघा
मेघा
ओरे मेघा रुक जा तू,
रुक जा बस एक बार
पिया मिलन को चली हूं,
मै नदिया के पार।
दिल का सूना "वन" महकेगा,
खुशियां मिलेंगी फिर एक बार।
बाहर बरसने वाला सावन
उतरेगा दिल में इस बार।
मै विरहनी क्या जानू?
क्या नौकरी?, कैसा घर बार?
मै जानू बस इतना ही
सुख
सावन आयेगा,
मेरे द्वार
सिंदूर के लिए,
"सिंदूर" में लड़कर,
आया है "सिंदूर" मेरा
जाने,
करके कितने समुन्दर?
कितनी नदियां पार ?।
ओ रे मेघा रुक जा तू,
रुक जा बस एक बार
संजय आरजू "बड़ौतवी "
