बख्श दो हमें
बख्श दो हमें
बख्श दो हमें
हम बेटी है समाज की
संपत्ति नहीं
जो हम पर अधिकार जमाते हो
क्या पाप है हम स्त्री जातियों का
जो हम पर अपनी मर्दानगी जताते हो
क्या हमारी चीख से तुम्हें डर नहीं लगता
तुम फिर भी हमें नोच खाते हो
तुम्हारी दरिंदगी का दर्द हम कैसे ब्यान करें
तुम तो जबान भी काट जाते हो
हैवानियत के बाद भी क्या तुम्हें दया नहीं आती
जो इज्जत हमारी लूटकर जिंदा जला जाते हो
कभी सोचा है तुमने कि तुम भी यदि लड़की होते
तो हर महीने पानी की तरह खून बहाते
अरे ! इतना ही नहीं
अपने शरीर से नवजीवन के लिए
तुम मौत से भी लड़ जाते
तुम कैसे सुकून से जी पाते
यदि तुम्हारे भी अंग खरोचें जाते
क्या शर्म से सिर झुकाते या
इज्जत पर लगा दाग मिटा पाते
इज्जत से जी पाना अब आसान नहीं
क्योंकि बेटियां बहुत सताई गई, कोई एक नहीं
मोमबत्तियों से श्रद्धांजलि मिलती है, इंसाफ नहीं
यहां इज्जत लूटने पर सिर्फ फाँसी होती है
रामायण या महाभारत नहीं
अब तो बख्श दो हमें
युग काल तक परिवर्तन हो गया
अब न गोविंद न राम है
सीता द्रौपदी के नाम अब भी बदनाम है
बख्श दो हमें
हम सिर्फ बेटी नहीं, वरदान है।