किसान महान
किसान महान
सूरज नें जैसे ही ली अंगड़ाई,
हो गया सुखद विहान।
धूप छाँव की चिंता छोड़कर,
चल पड़ा खेत की ओर किसान।
हीरा मोती बैल की जोड़ी,
ले कर चला वह सीना तान।
संग चल रही जीवन संगिनी,
करती कर्म महान।
दो छौनों को छोड़कर घर पर,
पति के संग करती श्रमदान।
अन्न उगा कर खेतों में अपनें,
करते हैं दोनों अन्न का दान।
धरती को धानी चूनर दे कर,
रखते हैं धरती माँ का मान।
क्षुधा देश की तृप्त करता है,
लेकिन खुद भूखा सोता है।
अपने श्रम जल के ही दम पर,
बन जाता किसान महान।
