यह कैसी स्मृतियाँ है?
यह कैसी स्मृतियाँ है?
जो दिल के कोनों से निकल कर,
बहार झाँक- झाँक जाती है
और ले जाती है फिर से, अपने ही झरोखों में,
आज जो दुनिया में नाही है, उनके लिए
कभी मीठी सी, धीमी सी गुनगुनाहट के स्वर
उठती - गिरती तान से, श्लोकों में ढल जाते थे
तो कहीं आरती की घंटी का स्वर लयबद्ध ढल जाता
कभी सिर पर हाथ धरे कोई कह उठता सदा सुखी रहो,
तो कभी उन्हीं में से कोई स्वर उठ खड़ा होता
अपनी ही मुद्रा में कहता है
जरा दुनियादारी भी सीखने दो उसे
आज फिर न दुलारते हाथों को,
देखने को जी चाहता है
इन स्मृतियों को माला में पिरो,
अपने अंतर्नाद को झेल इस पावस में
अपने अन्तःस्थल को भेद कर, क्षार -क्षार चिंतन करता है
उत्ताल - तरंगें सी उठती है हृदय में, धुंध - कोहरा छा जाता है
जीवन के झंझावातों में कब विस्मृत कर दिया था उन्हें,
आज फिर जीवंत हो उठे - नभ तिमिर में
स्वप्न के फूलो में, स्पंदन से जीवित हो उठे
सागर के गहरे जल से उठकर, जीवन के तट पर
लहराते है विशाल सागर जैसे,
अनुगूँज कर हृदय भर आता है, उनकी स्मृतियों से,
उनके स्निग्ध चेहरे आज फिर साकार उठे है
कितना अनुराग, कितना निच्छल, स्नेहासिक्त
आशीष ही आशीष, स्नेह मृदुत्तर
ईश्वरीय आभा से सिक्त, उज्जवल किरणों से सिंचित
अंकित कर हृदय में, भोर का सूरज जैसे,
स्वर्ण - कुमकुम हो माथे पर, मधुर बयार के झोंके जैसे
बाँध लूं आँचल में वो सब पल,
और नैनों की कोर धीरे से भीग उठती है
कहती है यहीं मेरे आस - पास ही है वो सब
भूली - स्मृतियाँ झांक - झांक जाती है,
दिल के कोनों से, अपने ही झरोखों से।
