माँ
माँ
ईश की अनुपम कृति , ईश का अनुपम उपहार
संस्कृति रक्षक , धरोअर पालक , तुम अटूट विश्वास
तपते रेगिस्तान में , मान सरोवर की झील सी
पूजा की घन्टी, गायत्री का छंद तुम
ॐ सब ईश को कहते है , पर मेरे लिए तुम ही शिव का ओंकार
फूलों के परागों सी , यादों के मीठे सपनों सी ,
तपते रेगिस्तान में , बारिश की भीगी फुहार सी ,
ठंड के मौसम में , गुनगुनाती धुप सी ,
ख़्वाबों के दमन क़ो , सच करती हुई माँ , तुम
निश्छल प्रेम के समुन्दर में उसके मोती से माँ ,
नदियों के कल कल में , धरती की अनुपम छटा सी ,
गुनगुनाती स्वर लहरियों के सुरताल सी तुम माँ
शब्दों के आख्यानो सी परे , अनंत के उस पर से परे ,
अब तुम मेरे पास , मेरे पास नहीं हो माँ ,
विकल मन , अब सिर्फ तुम्हे , तुम्हे ढूंढ़ता है रहता है
हर पल , हर क्षण, कही घर की चौखट के अंदर ,
कभी सुबह सुबह , मंदिर की घंटियों में ,
तुम्हारे लगाए बाग़ के फूलो में , पेड़ों की ठंडी छांव में ,
कानों में गूंजता रहता है , तुम्हारा स्वर और चेहरा
वह स्नेहस्कित आँखे, और वह ममता का समंदर
पर रेत की तरह फिसलती जाती है वह स्मृतियाँ मेरे हाथों से
और हाथों में कुछ भी नहीं ठहर पाता है।
माँ फिर से लौट आओ तुम , एक बार फिर से लौट आओ तुम।
