पत्थर और शिल्पकार
पत्थर और शिल्पकार
तुम पत्थर हो.....
स्वभाव कठोर है तुम्हारा
दिल नहीं है तुम्हारे पास
नहीं होता असर कोई
आँधी बारिश धूप का
निर्जीव हो तुम
परन्तु--‐-
मैं जानता हूँ
तुम निर्जीव नहीं हो
हो ही नहीं सकते
मेरी आंखों ने झाँक
लिया है तुम्हारे अंदर
मेरे हाथ तराशकर
तुझे कर देंगे
तबदील मूर्ति में
सज जायेगी किसी
मन्दिर में वो मूर्ति
तब होगी
जय-जयकार तेरी
तू पत्थर से भगवान
बन जायेगा और
रह जाऊँगा मैं
अछूत बनकर
पर........
मेहनत की खाऊंगा
रह जाएगा तू देखता
असहाय बनकर
निर्जीव पत्थर की तरह
कहा पत्थर से
शिल्पकार ने
एक दिन कुछ इस तरह l