Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

S.Dayal Singh

Abstract

4  

S.Dayal Singh

Abstract

दो जून की रोटी

दो जून की रोटी

1 min
422


दो जून की रोटी 

क्या क्या खेल खेलाती है 

आदमी से जीवन में 

क्या क्या नहीं करवाती है

आदमी सारा जीवन 

भागता है दौड़ता है

दो जून की रोटी का

तब कहीं जुगाड़ जोड़ता है

दो जून की रोटी

जब

कमानी पड़ती है

दिल के अरमानों की

पहले कब्र 

बनानी पड़ती है

दो जून की रोटी  

कड़ी मशक्कत भी करवाती है

चोरी डाका भी डलवाती है 

दो जून की रोटी

कोई घी शक्कर

से खाता है

कोई सूखी ही

चबाता है

दो जून की रोटी

किसी को बासी ही

नसीब होती है

किसी को नसीब

ही नहीं होती 

दो जून की रोटी

देखते ही

उसका 

मन भर आता है

जो कई-कई दिन 

रोटी के दर्शन ही

नहीं कर पाता है

ऐ! दुनिया के रईसों

मत गिराओ तुम 

है जो तुम्हारें पास 

बची हुई रोटी  

किसी को आसानी से

किसी को मुश्किल से 

नसीब होती है 

ये दो जून की रोटी।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract