आओ!चलें अब गाँव की ओर
आओ!चलें अब गाँव की ओर
गर्म हवा है,गर्म फिज़ा है
चलो! चलें कहीं छांव की ओर,
शहर में दम-सा घुटने लगा है,
आओ!चलें अब गांव की ओर।
जीवन लक्ष्य दुर्ग भेदने
पर्वत पर्वत चीर दिये,
जिधर किधर भी डगर मुड़ी,
पाँव मुड़े उसी ठांव की ओर।
दौर मशीनी युग का मानव
बनकर रह गया खुद मशीन,
द्रव्य,दौलत,अर्थ जुटाने
चला नये नये दांव की ओर।
भूखे पेट मृग रहा भटकता
मरुद्वीप की चाहत में,
रेत धधकती जख्म दे गई,
देखा तक नहीं पांव की ओर।
बालकपन का बरगद साथी
मस्ती बांटी जिसके संग,
उसने भी पैगाम भेज दिया
आता क्यूं नहीं छांव की ओर ?
शहर में दम-सा घुटने लगा है,
आओ!चलें अब गांव की ओर।