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Minal Patawari

Abstract Inspirational

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Minal Patawari

Abstract Inspirational

अब भी बाकी हैं शौक मेरे

अब भी बाकी हैं शौक मेरे

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अब भी बाकी हैं शौक मेरे 

अच्छा लगता है अब भी खुद से बतियाना

नीले अम्बर को यूं ही तकना 

चिड़िया की बोली में उनके संग चहचहाना ।।


बरखा की फुहारों में हो के सराबोर

गीली मिट्टी की सौरम में डूब जाना

पत्तों की ओस हाथों में सिमटे 

उपवन के सतरंगी जादू को चुराना ।।


कभी भूले से छत पर जो पहुंचे 

होड़ में अपनी पतंग को ऊंचे ले जाना

 और जो कट जाए किसी की पतंग 

तो झूम कर खुशी से इतराना ।।


उम्र कोई बंधन तो नहीं

दायित्वों को क्यों बोझ बनाना 

कोई लूं नया रूप मैं, "स्वयं" को न खो दूं मैं 

सीख लूं खुद के संग, खुद के लिए मुस्कुराना ।।


अब भी बाकी हैं शौक मेरे -

अच्छा लगता है अब भी खुद से बतियाना -



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