कोई सुने या न सुने जी खुद ही पढ़कर मुस्कुरा लेती हूँ। कोई सुने या न सुने जी खुद ही पढ़कर मुस्कुरा लेती हूँ।
वापिस ना आएंगे, चले गए जो एक बार वापिस ना आएंगे, चले गए जो एक बार
इस महानगरीय जीवन में हर पल ही व्यस्तता है । इस महानगरीय जीवन में हर पल ही व्यस्तता है ।
कभी भूले से छत पर जो पहुंचे होड़ में अपनी पतंग को ऊंचे ले जाना कभी भूले से छत पर जो पहुंचे होड़ में अपनी पतंग को ऊंचे ले जाना
पत्तों की ओस हाथों में सिमटे उपवन के सतरंगी जादू को चुराना ।। पत्तों की ओस हाथों में सिमटे उपवन के सतरंगी जादू को चुराना ।।
मातृभाषा हिन्दी, माँ सी हमें प्यारी है , बच्चों की दुलारी है । मातृभाषा हिन्दी, माँ सी हमें प्यारी है , बच्चों की दुलारी है ।