व्यस्तता
व्यस्तता
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इस महानगरीय जीवन में
हर पल ही व्यस्तता है
इसी व्यस्तता में
काफ़ी कुछ छूट जाता है
बहुत कुछ रह जाता है बाक़ी
रह जाता है
कुछ पल बतियाना अपनों से
कुछ अपनी कहना
कुछ उनकी सुनना
रह जाता है घंटे दो घंटे
दोस्तों के साथ घूमना
रह जाता है ख़ुद को समझना
ख़ुद को टटोलना
अपने मन की कुछ बातें
अपनों को ही समझाना
बड़ी टीस होती है
जो इस व्यस्तता के चलते
इतना कुछ बाक़ी रह जाता है
और सबसे अधिक खलती है
ये व्यस्तता तब
जब मन की अनेक बातें
मन में ही
घुमड़ती रह जाती है
ये व्यस्तता
लिखने नहीं देती
उन्हें पन्नों पर !!
