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Sudhir Srivastava

Abstract Inspirational

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Sudhir Srivastava

Abstract Inspirational

संवेदना

संवेदना

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संवेदनाओं का वेग

कब कहाँ कैसे फूट पड़े,

किसके मन में, लिए

आकर बरस पड़े

भला कौन बता सकता है।


लाचार, बेबस बुढ़िया को

ये गुमान भी न रहा होगा,

कि कोई फरिश्ता बन आकर

अपने हाथों से भोजन करा रहा होगा।


पुलिस वाले ने भी ऐसा 

शायद ही कभी सोचा होगा,

बस एकाएक उसके अंतर्मन में

कुछ भाव ऐसा जगा होगा।


बस ऐसे ही एकाएक

संवेदनाएं मचल गयी होंगी,

अंजान भिखारिन सी 

लाचार बुढ़िया में 

बस एक माँ दिखी होगी।


तब वो खुद को शायद

रोक न पाया होगा,

बेटा बनकर लाचार माँ को

अपने हाथों भोजन कराया होगा।


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