दोहा छंद
दोहा छंद
खण्डित मन मत कीजिए, होता है अवसाद।
सबको अपना मानिए, अनुपम मिले प्रसाद।।
वर्जित खंडित मूर्ति है, रखना नहीं निवास।
खंडित मन रखना नहीं, निर्मल मन रख पास।।
खंडित करते देश जो, कहलाते गद्दार।
कभी तोड़ना मत वतन, करो नेक उद्गार।।
खंडित लज्जित मानकर, करो देश गुणगान।
यहाँ शहीदों ने दिए, प्राणों का बलिदान।।