झोपड़ी नहीं, अखाड़ा...!!!
झोपड़ी नहीं, अखाड़ा...!!!
साल २०२३ मई के महीने से
इस 'टूटी- फूटी झोपड़ी' में
गुज़रबसर करते हुए
मुझे यक़ीनन
इस जद्दोजहद भरी ज़िन्दगी में
कंक्रीट के घरों और कच्चे घरों के
दरमियाँ लंबी दूरी का
असली फर्क मालूम पड़ ही गया...!
हैरतअंगेज़ बात तो ये है
कि अक्सर 'वक्त का हथौड़ा'
हरेक ईमानदार इंसान पर
अंधाधुंध पड़ता है
और वो इंसान
आनन-फानन
बदहवासी में
मारा-मारा फिरता रहता है...!
मगर फिर भी वो
किसी भी सूरत-ए-हाल में
अपनी बदहाल ज़िन्दगी के आगे
घुटने नहीं टेका करता,
बल्कि बड़ी सख्ती से
सितमगर वक्त को
ये चेतावनी देता है --
"मेरे ईमान को डगमगाने की
कभी जुर्रत भी न करना,
क्योंकि न तो मैं
गुज़रे हुए कल में कभी कमज़ोर था
और न ही आज किसी भी पल कमज़ोर हूँ !"
हाँ, मैं लड़ूँगा...!!! और हिम्मत से लड़ूँगा...!!!
देख लेना, मैं एक दिन बेशक़ अपनी
'फूटी किस्मत' पर कामयाबी का
चार चाँद लगाऊँगा...!
तब न तो किसी की
सिफारिश की ज़रूरत पड़ेगी
और न ही किसी की
कोई गुज़ारिश काम आएगी...!!!
आज मैं ये ऐलान करता हूँ कि
मैं अपनी 'फूटी किस्मत' को
अपने दम पर ही चमकाऊँगा...
और अपनी मंज़िल का
सही ठिकाना ढूँढ़ ही लूँगा...!!!
ये मेरी अस्थायी झोपड़ी नहीं,
ये तो मेरा 'अखाड़ा' है,
जहाँ मैं शाम-ओ-सहर
बेरहम वक्त के साथ
कुश्ती लड़ा करता हूँ...!
कभी शिकस्त का सामना करता हूँ,
तो कभी फतेह हासिल करता हूँ...!!!