पर्यावरण
पर्यावरण
तन-मन दोनों साथ जोड़कर,
इसका कर्ज चुकाते हैं।
दूब,पेड़-पौधों से मिलकर,
हम परिधान बनाते हैं।
अपनी प्यारी वसुंधरा को,
मिलकर चलो सजाते हैं।
श्रम को अपना देव बनाकर,
श्रमजीवी बन जाते हैं।
अपने श्रम से इसे सींचकर,
स्वर्ग समान बनाते हैं।
अपनी प्यारी वसुंधरा को,
मिलकर चलो सजाते हैं।
वैर भाव को दूर भगा कर,
शांतिदूत बन जाते हैं।
सभी धर्मों का मर्म समझ कर,
मैत्री भाव दोहराते हैं।
अपनी प्यारी वसुंधरा को,
मिलकर चलो सजाते हैं।
आओ अब शपथ लेकर,
देश नहीं मिटने देंगे।
इस वसुधा की शान की खातिर,
जान भी अपनी दे देंगे।
अपनी प्यारी वसुंधरा को,
मिलकर चलो सजाते हैं।
सत्य-अहिंसा को अपनाकर,
प्राणी मात्र पर दया करें।
खुद भी जी लें अपना जीवन,
दूजे को भी जीने दें।
अपनी प्यारी वसुंधरा को,
मिलकर चलो सजाते हैं।
भाँति-भाँति के वृक्ष लगाकर,
हरियाली फैलाएंँगे।
अमन-चैन,सुख-शांति का नारा,
हम सब यहीं लगाएंँगे।
अपनी प्यारी वसुंधरा को,
मिलकर चलो सजाते हैं।