गर्मी छुट्टी
गर्मी छुट्टी
जाने कहाँ गये,
बचपन की ग्रीष्म छुट्टियाँ।
याद बहुत आते,
वो मस्ती भरी छुट्टियाँ।
ऐसी तो कदापि न थी,
हमारी वो छुट्टियाँ।
मिलते सबसे तब,
बचपन की वो सखी सहेलियाँ।
कितनी सुहावनी होती,
वो गर्मी की छुट्टियाँ।
जानें कहाँ गये,
वो तालाब की मस्तियाँ।
भरी दुपहरी में,
अमराइयों की धमा-चौकड़ियाँ।
अमराइयों की वो,
कोयल की मीठी बोलियाँ।
याद बहुत आती है,
वो प्यारी अमराइयाँ।
जानें कहाँ गये,
वो बचपन की लड़ाइयाँ।
याद बहुत आते हैं,
माँ के हाथों बनी अचार की बरनियाँ।
वो पचीसा का खेल,
जिसमें होती थीं खूब बहस-बाजियाँ।
याद बहुत आते हैं,
ब्याही गई वो गुड्डे-गुड्डियाँ।
नई खुशियों का आविर्भाव हुआ,
अभाव में भी खुशियों का भाव था।
और अब ?
भाव में भी खुशियों का अभाव है।
सब कैद हो चुके,
अपने-अपने घर में।
अमराईयाँ सूने हो गये ,
मोबाइल ले ली सारी मस्तियाँ।
अब मोबाइल हो चुकी,
बआल-वऋद्ध-जवआन सबकी दुनियाँ।
याद बहुत आते हैं,
वो गर्मी की मस्ती भरी छुट्टियाँ।।
