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Monika Kapur

Inspirational

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Monika Kapur

Inspirational

वंचित सपनों को विस्मृत कर

वंचित सपनों को विस्मृत कर

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क्या अतीत से आहत होना?

क्या भूली बातों पे रोना ?

कर्म निहित चलता है जीवन,

तब क्या पाना और क्या खोना।

है मनुष्य तो सब बिसरा कर,

सत्य से अब तू परिचित हो ले।

वंचित सपनों को विस्मृत कर,

माला शुभ कर्मों की पिरो ले ।


सुगम नहीं मनचाहा मिलना ,

हर स्वप्न यथार्थ नहीं हो पाता ।

जो टूटे सपनों से हो व्याकुल,

जीवन में सुख नहीं वो पाता ।

नव उत्साह से, नवीन स्वप्न को,

निज की आंखों में तू संजो ले,

वंचित सपनों को विस्मृत कर,

माला शुभ कर्मों की पिरो ले ।


अधिक की चाह में अंधा मत हो,

भाग्य में जितना है, पाएगा।

दौड़ है ये, है मृगतृष्णा सी,

पीछे हाथ न कुछ आएगा ।

परोपकार के पावन जल से,

जीवनरूपी गात भिगो ले ।

वंचित सपनों को विस्मृत कर,

माला शुभ कर्मों की पिरो ले ।



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