बढ़ पथिक
बढ़ पथिक
अथाह मुश्किलों से लड़ ,
अनेकों बाधा झेल कर।
चला है जो तू अनवरत ,
बिना रुके हुए, सतत ।
तो आज ठौर भी, सुनो,
प्रतीक्षारत तेरे लिए ।
है खुद को ही बुहारता,
वो कंटकों भरा सा पथ।
ना कोई भय, बाधा कोई,
जो तेरे प्रण को तोड़ दे ।
तू हिमगिरि सा है अडिग,
थमेगा ना, तू ले शपथ।
भले न कोई संग चले,
ना पीठ थपथपाएगा ।
तू अपनी पीठ को ठोक कर,
बाधा कदम, निडर, अथक।
