कुटुंब
कुटुंब
वो बड़ी सड़क से जुड़ती,
मिट्टी वाली पगडंडी।
उसी पगडंडी की छोर पर बसा,
अन-चाहों का आश्रम
या अनावृतों का आश्रय।
जिन्हें छोड़ दिया, अपनों ने।
पाने वालों ने, चाहा नहीं।
नहा धो कर, हर रोज़ आशा सजा,
छोटे छोटे हाथ,
किसी के हाथ की कामना करते हैं।
वो इंतज़ार से भरी नन्हीं आंखें,
सड़क की ओर देखती हैं, एकटक।
होना चाहती हैं किसी कुटुंब का हिस्सा,
जो सब को जन्म के साथ सहज ही मिल जाता है,
पर उनके लिए है संघर्ष, किसी कुटुंब का होना।
