पहली बारिश की बौछार
पहली बारिश की बौछार
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पहली बारिश की बौछार पर,
संतोष से भर जाता किसान का मन ।
मिट्टी की तृष्णा मिट जाती ,
बन जाते नन्हें से बीज अन्न ।
पहली बारिश की बौछार पर ,
उन्माद, नन्हें बालक की आंखों में ।
वो कागज़ की नन्हीं नावें बन जाती,
झूले सज जाते, पेड़ की छाओं में ।
पहली बारिश की बौछार पर ,
प्रेयसी के मन की आतुरता ।
बादल से निज नेह छलकता,
पी से मिलने की व्याकुलता ।
पहली बारिश की बौछार पर,
हिय का भीत भीत हो जाना ।
कभी टूटी खपरैल की छत वो ,
कभी कच्ची दीवार का हिल हिल जाना ।
पहली बारिश की बौछार पर,
वेग पकड़ती सरिता का भय ।
कहीं न तट सारे बह जाएं ,
छिन्न भिन्न न हो जाए आश्रय ।
कहीं आनंद, कहीं वेदना लाए ।
वर्षा की है, अलग कहानी ।
कहीं लगता अमृत सा जल ये ।
कहीं लगता विष सा ये पानी ।
