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Monika Kapur

Others

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पहली बारिश की बौछार

पहली बारिश की बौछार

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पहली बारिश की बौछार पर,

संतोष से भर जाता किसान का मन ।

मिट्टी की तृष्णा मिट जाती ,

बन जाते नन्हें से बीज अन्न ।


पहली बारिश की बौछार पर ,

उन्माद, नन्हें बालक की आंखों में ।

वो कागज़ की नन्हीं नावें बन जाती,

झूले सज जाते, पेड़ की छाओं में ।


पहली बारिश की बौछार पर ,

प्रेयसी के मन की आतुरता ।

बादल से निज नेह छलकता,

पी से मिलने की व्याकुलता ।


पहली बारिश की बौछार पर,

हिय का भीत भीत हो जाना ।

कभी टूटी खपरैल की छत वो ,

कभी कच्ची दीवार का हिल हिल जाना ।


पहली बारिश की बौछार पर,

वेग पकड़ती सरिता का भय ।

कहीं न तट सारे बह जाएं ,

छिन्न भिन्न न हो जाए आश्रय ।


कहीं आनंद, कहीं वेदना लाए ।

वर्षा की है, अलग कहानी ।

कहीं लगता अमृत सा जल ये ।

कहीं लगता विष सा ये पानी ।



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