STORYMIRROR

Jiwan Sameer

Abstract

3  

Jiwan Sameer

Abstract

अरे बौराया मन

अरे बौराया मन

1 min
204

घटा घनघोर है छाई

झूठे आडंबरों को तज

हो लीन प्रभु के चरण में 

है यह वैभव विषण्ण का सावन!

         अरे बौराया मन!!


क्षीण देह कलुषित वरण

उग रहे कलुषित अकुंर

अधीर प्राण व्याकुल भाग

तोड़ मरोड़ छोड़ दूं यौवन! 

        अरे बौराया मन!!


स्वार्थ के दरख़्तों ने

शाखें अपनी फैलाई हैं 

दूर तक परछाइयाँ

भोग महलों की छाई हैं

विरक्ति को गले लगा

न्यौछावर कर सुख मधुबन! 

       अरे बौराया मन!!


तृषित सृष्टि का मोह

किया किसने नहीं 

यहां तो समाई बेकली सभी

मन थन को कर उन्मना

बिछा हुआ है प्रभु शयन!

       अरे बौराया मन!! 


ଏହି ବିଷୟବସ୍ତୁକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରନ୍ତୁ
ଲଗ୍ ଇନ୍

Similar hindi poem from Abstract