अरे बौराया मन
अरे बौराया मन
घटा घनघोर है छाई
झूठे आडंबरों को तज
हो लीन प्रभु के चरण में
है यह वैभव विषण्ण का सावन!
अरे बौराया मन!!
क्षीण देह कलुषित वरण
उग रहे कलुषित अकुंर
अधीर प्राण व्याकुल भाग
तोड़ मरोड़ छोड़ दूं यौवन!
अरे बौराया मन!!
स्वार्थ के दरख़्तों ने
शाखें अपनी फैलाई हैं
दूर तक परछाइयाँ
भोग महलों की छाई हैं
विरक्ति को गले लगा
न्यौछावर कर सुख मधुबन!
अरे बौराया मन!!
तृषित सृष्टि का मोह
किया किसने नहीं
यहां तो समाई बेकली सभी
मन थन को कर उन्मना
बिछा हुआ है प्रभु शयन!
अरे बौराया मन!!
