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Nilima Paliwal

Abstract

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Nilima Paliwal

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हल्दी कुमकुम

हल्दी कुमकुम

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लो आ गई मकर संक्रांति ,

हम औरतों के लिए , जैसे हो ये क्रांति

सुबह से ही सब तामझाम में लग जाए

तिल गुड़ खिलाकर सबको रिझाएँ।

ज्यादा नहीं बस# चाह है उसकी इतनी ,

पति परमेश्वर लेदे उसको साड़ी ,

उसके मन के जितनी ।

साड़ी तो एक बहाना हेे,

हल्दी कुंमकुंम त्यौहार में उखाना लेकर #

सबसे अच्छा पति मेरा यही कहलवाना हे।

तिल गुड की तरह मीठास रहे सबके जीवन मेेे,

दुुआ है,

पत्नी की ख्वाहिश पुरी होती रहे उसके दिल मे।



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