वो दिन आया ही नहीं
वो दिन आया ही नहीं
उसकी मधुर चितवन
देख फिसले अक्सर हम
सपने चित्रित जागृत मन
न वो बतायी न बताये
वक्त बदला राज दबाये
मानव हैं नजर के भूखे हैं हम
आईने में खुद को संवार चुके हैं हम
पर उसके तरह कोई भाया नहीं
फिर वो दिन कभी आया नहीं
आज जीवन सड़क पर
पीछे पड़ती है जब नजर
एक साया मुस्कराता है अक्सर
कहता है खोया तुमने अवसर
शायद साकार होते सपने
पर तुमने बात बताया ही नहीं
फिर वो दिन कभी आया ही नहीं !
