Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Shakuntla Agarwal

Classics

4  

Shakuntla Agarwal

Classics

"गंगा मैया"

"गंगा मैया"

1 min
426


नख से निकली 

भगवान विष्णु के

ब्रम्हा के कमण्डल ने 

समाहित किया

अवतरण होते ही धरती पे

शिव जटाओं ने आकार दिया

मंगलवार ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष

दशमी को हस्त नक्षत्र में 

स्वर्ग से अवतरण हुआ

गंगा दशहरा में 

स्नान ध्यान करने से

दस पापों का अन्त होता

मेरे वेग को शान्त करने को

रसायनों में घोल दिया

मेरा नारद पुराण ने 

व्याख्यान किया

"नास्ति गंगा समं तीर्थ,

नास्ति मातृ समो गुरु"

गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं

मां के बराबर कोई गुरु नहीं

गोस्वामी तुलसी दास ने 

भी मेरा उल्लेख किया

'हरनि पाप त्रिविध ताप

सुमिरन सुरसरित'

मेरे सुुमरिन मात्र से पापों,

त्रिविध ताप का हरण होता

बूंद -बूंद अमृत की देकर

तुमको जीवन दान दिया

सच मानों तो, मैं जीवन दायिनी

मैंने जीवों का उद्धार किया

उन्हीं जीवों की करतूतों ने

मेरा सीना छलनी कर दिया

कल-कारखानों, गन्दे नालों को

मुझमें समाहित किया

मेरी पवित्रता को धूमिल किया

स्वार्थ के लोभी जीवों ने

जैसे चाहे मेरा उपयोग किया

बीड़ा उठाकर पवित्रता का

मेरा भी उद्धार करो

मैं तुम्हारी गंगा माँ

मुझमें आस्था का 

वही दम भरो

आने वाली पीढ़ियों को

मेरा जल "शकुन"

निर्मल व स्वच्छ करों

मैं तुम्हारी गंगा मां मेरी

तुम आह सुनो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics