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Madhu Vashishta

Classics

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Madhu Vashishta

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भक्ति योग

भक्ति योग

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हे उद्धव क्या मुझे समझाएं

ज्ञान की बातें काहे बतलाएं ।

हम अज्ञानी हैं पर इतना जाने

कृष्ण वहां जहां हम माने।

कृष्ण की बंसी आज भी बजती।

छवि उसकी हम सबके मन बसती।

गिरधर गोपाल नंदलाल था यहां पर बसता।

गोपियों की ताल पर था नाचता और हंसता।

द्वारकाधीश को जानते तुम हमको क्या समझाओगे?

हमारे तो वृक्ष, नदी हो या हो , ब्रज की माटी

हर जगह कान्हा की छवि और उसकी सुगंध ही पाओगे।

हमारी बिरहा को देखकर तुम काहे अकुलाते हो?

हम सबके मन कान्हा में ही बसे हैं कान्हा हमारे साथ रुके हैं।

कान्हा की छवि तुम सब में देख ना पाए क्या?

फिर मां यशोदा और राधा को क्यों बुलाते हो?

मां यशोदा के आंचल में कान्हा

छिपता आज भी यूं ही है।

राधा और गोपियों संग रास रचाते सब कान्हा सम हो गई है।

देखो राधा के साथ कान्हा की मनोरम छवि है

जाओ उधो यहां ना समझाओ?

कान्हा के पास वापस जाओ।

शरीर वहां होगा कान्हा का

पर मन तो सबके पास यहीं है।

प्रेम योग यहां हर मन फैला,

यहां भक्ति योग की जगह नहीं है।



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